अब अजीब नहीं लगता कुछ भी
ना तेरा मुस्कुराना
न आंसू बहाना
बंद पलकों से हकीकत छुपाना
या मेरे करीब आते-आते
तेरा लौट जाना
यूँ देखना मुझे अनजान नज़रों से
और मेरी हंसी उड़ाना
देकर तवज्जो औरों को
मुझको जलाना
या लम्हा-लम्हा तेरा
मुझसे दूर जाना
कुछ भी अजीब नहीं लगता
सच कहूँ,
तो आदत सी हो गई है
तेरे हाथों से टूटने की
टूटकर बिखरने की
उन टुकरों में अपनी
पहचान ढूंढ़ने की
और कर भी क्या सकती हूँ
बदल भी क्या सकती हूँ
होठ सिल दिए हैं
इस तरह वक़्त ने
कह भी क्या सकती हूँ
ये नुमाइश नहीं
मेरे प्यार या तेरी बेफाई की
न गुजारिश है तुझसे
तेरे लौट आने की
दिल बस इतना कहना चाहता है तुमसे
मेरी मैयत पे
नम आँखें लिए मत आना
जल भी नहीं पाऊँगी मैं
बुझ जाएगी चिता मेरी
वो आखरी फासला भी
तय ना होगा मुझसे
और फिर एक बार
नाकाम होगी
कोशिशें मेरी
मैं जानती हूँ
मेरी नाकामी से प्यार है तुमको
सिर्फ इसकी तमन्ना है तुमको
फिर भी तेरी ख़ुशी के लिए
नहीं चाहती लौट आना फिर से
मजबूर तुमने कर रखा है...
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