Friday, August 12, 2011

मजबूर तुमने कर रखा है


अब अजीब नहीं लगता कुछ भी
ना तेरा मुस्कुराना
न आंसू बहाना
बंद पलकों से हकीकत छुपाना
या मेरे करीब आते-आते
तेरा लौट जाना

यूँ देखना मुझे अनजान नज़रों से
और मेरी हंसी उड़ाना
देकर तवज्जो औरों को
मुझको जलाना
या लम्हा-लम्हा तेरा
मुझसे दूर जाना 
कुछ भी अजीब नहीं लगता
सच कहूँ,
तो आदत सी हो गई है
तेरे हाथों से टूटने की
टूटकर बिखरने की
उन टुकरों में अपनी
पहचान ढूंढ़ने की

और कर भी क्या सकती हूँ
बदल भी क्या सकती हूँ
होठ सिल दिए हैं
इस तरह वक़्त ने
कह भी क्या सकती हूँ

ये नुमाइश नहीं
मेरे प्यार या तेरी बेफाई की
न गुजारिश है तुझसे
तेरे लौट आने की

दिल बस इतना कहना चाहता है तुमसे 
मेरी मैयत पे 
नम आँखें लिए मत आना 

जल भी नहीं पाऊँगी मैं
बुझ जाएगी चिता मेरी
वो आखरी फासला भी
तय ना होगा मुझसे
और फिर एक बार
नाकाम होगी
कोशिशें मेरी

मैं जानती  हूँ
मेरी नाकामी से प्यार है तुमको
सिर्फ इसकी तमन्ना है तुमको
फिर भी तेरी ख़ुशी के लिए 
नहीं चाहती लौट आना फिर से 

मजबूर तुमने कर रखा है...

Thursday, August 11, 2011

मेरे शब्द


आज मैंने खुद को एक ख़त लिखा
नीचे नाम अपना और ऊपर पता लिखा
कुछ शिकायतें लिखी, कुछ तारीफें भी
और गुजर चुके लम्हों का अफसाना लिखा
कुछ शब्द खो गए, कुछ बिखर गए
कुछ तो कलम में हीं कैद रह गए
कुछ गए मजार पर सजदे के वास्ते
कुछ पुरानी यादों में भटकने लगे
कुछ ने चुराली चांदनी चाँद की
कुछ रौशनी में सूरज की गुम हो गए
कुछ बंद थे अब भी आसमान की आँखों में
कुछ धरती के सीने को चीरने लगे
कुछ ने मोड़ा रुख नदियों का
कुछ सागर की सीमा को लांघने लगे
कुछ बेचैन थे मेरे दिन रात के लिए
कुछ अपनी पहचान तलाशने लगे
वो शब्द मेरे जाने.....................
........................कहाँ खो गए ?

Wednesday, August 3, 2011

बता सकते हो ऐसा क्यों ?


जो वक़्त होता
जवाब देता तेरे सवालों का
सुलझाता तुम्हारी उलझनों को
ढूंढता, उन रास्तों को
जिनमे खो गए तुम
भूल गए हो अपना घर भी
जिसमे तुम आज भी रहते हो
मिलने आते हैं तुम्हारे दोस्त
आज भी तुमसे
मगर तुम किसी को पहचानते नहीं हो
मिलते हो सबसे अजनबियों की तरह
अपना किसी को मानते नहीं हो
बता सकते हो ऐसा क्यों ?
क्यों भूल गए वो सब कुछ
जो तुम्हें अब भी याद है
क्यों ???????