Thursday, August 11, 2011

मेरे शब्द


आज मैंने खुद को एक ख़त लिखा
नीचे नाम अपना और ऊपर पता लिखा
कुछ शिकायतें लिखी, कुछ तारीफें भी
और गुजर चुके लम्हों का अफसाना लिखा
कुछ शब्द खो गए, कुछ बिखर गए
कुछ तो कलम में हीं कैद रह गए
कुछ गए मजार पर सजदे के वास्ते
कुछ पुरानी यादों में भटकने लगे
कुछ ने चुराली चांदनी चाँद की
कुछ रौशनी में सूरज की गुम हो गए
कुछ बंद थे अब भी आसमान की आँखों में
कुछ धरती के सीने को चीरने लगे
कुछ ने मोड़ा रुख नदियों का
कुछ सागर की सीमा को लांघने लगे
कुछ बेचैन थे मेरे दिन रात के लिए
कुछ अपनी पहचान तलाशने लगे
वो शब्द मेरे जाने.....................
........................कहाँ खो गए ?

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