Sunday, January 30, 2011

अल्फाज


खामोशियों में लिपटे तेरे अल्फाज 
आज फिर कुछ कहते हैं, चाँद की चांदनी से 
गरजते बादल से मांग ली बूंदें उसने 
करता रहा पर्दा हर किसी से 
चमकती धुप में सूरज की, वो मोती धुन्धता था 
कल तक तो मेरे पास ही वो रह रहा था 
आज सुबह ही जाग उठा वो नींद से 
और फेर ली नजर मेरी  तरफ से उसने
चुरा लिया है चैन दिल के करार का 
आँखों में नहीं अक्स ख़ुशी के खुमार का 
दिन और रात के बीच का पर्दा भी हट गया 
जो छीन ली मुझसे मेरी शहर उसने 
वो कहता था मुझसे कल, मैं वक़्त नहीं 
उतर जाऊं जो दिल में वो शै नहीं
फिर भी दिल में वो हीं तो रह रहा था
कभी नहीं की जिसकी कदर उसने

Saturday, January 22, 2011

हक़ीक़त


सपनो का महल जो बन ही रहा था 
रौनकें जिसकी संवर ही रही थी 
जो था मेरे दिल के अरमानों का घर 
उसी पर तो सबकी निगाहें टिकी थीं 
फ़ना कर दिया इसके वजूद को उसने 
कभी जिसने इसकी कहानी लिखी थी 
जिसे हमने आज गुज़रा कल है बताया 
हम ख़ुद भी न समझे 
उसकी हक़ीक़त ही क्या थी 

Monday, January 17, 2011

आहट

एक तन्हा ज़िंदगी है और क़ैद में ख़ुशी है
मेरी बुझती आँखें एक जाल बुन रही हैं
वक़्त के टुकड़े हैं कुछ इस तरह से बिखरे
मेरी जलती साँसे इनसे उलझ रही हैं
टकराते हैं जिस जगह ये रास्ते भी थककर
ख़ुद ही वो हमारी मंज़िल-सी बन गई हैं
वो आसमां जो झुककर धरती को चूमता है
उस आसमां की सिम्त मेरी रूह का सफ़र है
एक अजनबी-सी आहट और दिल मुंतज़िर है

Sunday, January 16, 2011

पहचान


कुछ  देर  तो
ख़ुद  की  तलाश  की
फाइलें पलटी पहचान  के  लिए
कुछ लम्हें तन्हाई  में  गुज़ारे
और  अँधेरी  रात से  बात  की
तलाश  आईने  की  करने  को  कह  गया  है  वो
और रास्ता दिखाया  
जिसकी  मंजिल  ही    थी
मज़ाक  बनाया  उसने  मेरा
या  हकीकत  बयां  की
हमारे  जहन में अब तक 
एक  यही  बात  थी
कदम  बढ़ते चले  राहों  में
मगर  आँखें  उदास  थी
शायद  उसकी  नज़र  में  भी  
कुछ  यही  बात  थी
था  वो  कौन ? 
हम  ये  जान  न  सके
या यूँ  कहिये  
हम  आईने को अपने  पहचान न सके...