Friday, December 23, 2011

वजूद


हसरते दिल की यूँ पिघलती चली गई
ख्वाहिशें दिल की यूँ जलती चली गई
सूरज की रौशनी थी जैसे चाँद के लिए
वो रौशनी बदन पे यूँ मालती चली गई

बुझ रहा था चाँद आसमान में कहीं
और सज रहे थे तारे जमीन पर यहीं
खो रहा था वजूद पानी का बादलों में
उड़ते चले थे वो भी अनजान रास्तों में

सिकुड़ रहा था सूरज, उसे ठंढ लग रही थी 
शायद बादल की नज़र आज उसपर पड़ी थी
बिखर गया वो भी जाने किस लिए
चाँद आज सुना थाशायद इसलिए

वो देखते थे मूड कर तारों को आज भी
उलझी हो उन्हीं में जैसे उनकी जिंदगी
सावरे थे सपने उनके भी कल 
मगर आज
आज जुदा है उनसेउनका हर पल 

Tuesday, October 18, 2011

तुम


सुनो ना..........
अक्सर कहा करते थे तुम
कुछ बोलोगी नहीं..........  बोलो
अक्सर पूछा करते थे तुम
मेरे गुस्से पे भी तुम्हें 
प्यार  जाता था
मेरी नाराजगी भी सह लेते थे तुम
मेरा रूठना जो तुमसे गवारा  था
मासूम बच्चे की तरह 
मना  लेते थे तुम
 जाते जो मेरी आँखों में आंसूं
तो साथ मेरे रो देते थे तुम
मेरे साथ बारिशों में अक्सर 
अक्सर भींग लेते थे तुम

तुम जो हर रोज सताते थे मुझे
तुम जो हर रोज मनाते थे मुझे
तुम जो हर रोज मिलने की चाह रखते थे
तुम जो हर रोज बुलाते थे मुझे
तुम जो हर रोज भूल जाते थे
तुम जो हर रोज बहलाते थे मुझे
तुम जो हर रोज दिल दुखाते थे
तुम जो हर रोज जताते थे मुझे

तुम्हारी तमन्ना
तुम्हारी ख्वाहिश थी 
जो मेरे साथ साथ चलते थे
चाहते थे साथ आना मेरे
और हर दिन रास्ते भी बदलते थे
कभी इज़हार.....  
तो कभी इकरार किया करते थे
जब जो दिल में आता 
वही हर बार किया करते थे
कभी मेरी बातें
बड़े गौर से सुना करते थे
तो कभी......
मेरी खामोशी भी समेट लिया करते थे
कभी तो मेरी हर बात मान लेते थे
तो कभी अपनी जीद में
मुझे भूल जाया करते थे

छुपाने की कोशिश में
कितनी बार बताया करते थे
हँसाने की कोशिश में
हर बार रुलाया करते थे

तुमने सोचा है कभी
क्यों मै दूर जाया करती हूँ ?
तुमने सोचा है कभी
क्यों रास्ते बदलती हूँ ?
तुमने सोचा है कभी
क्या चीज़ है ये दोस्ती ?
तुमने सोचा है कभी
क्यों मै साथ चला करती हूँ ?
तुमने सोचा है कभी
क्यों हार जाते हो ?
तुमने सोचा है कभी
क्यों मान नहीं पाते हो ?

बोलो.............. सोचा है कभी ?

सवाल पहाड़ से खड़े होते हैं
तुम्हारे दिल में भी
जवाब ढूंढते हो तुम भी
पागलों की तरह
हर बार उस खुदा से मांग लेते हो
दुआओं में  मुझको मन्नतों  की तरह

हर बार एक कोशिश तुम्हारी
प्यार से प्यार को पाने की
मगर क्या तुम जानते हो ?
जिस प्यार से तुम मुझे पाना चाहते हो 
तुम्हारे  उसी प्यार ने
मुझे दूर कर दिया तुमसे

Friday, September 2, 2011

मेरी सोच का सागर


अपनी सोच के सागर को
जो मैं समेट लूँ
बोलो,
कैसे उस पार जा सकोगे तुम ?
वो जो हर घडी, हर पल
मुझसे दूर है
बोलो,
कैसे उसको मुझ तक ला सकोगे तुम ?
तुम कहते हो
आसान है सब
सिमटना, बिखरना, टूटना, चाहना
मगर पूछो मेरे हाथो की  इन लकीरों से
कितना मुस्किल है इनका बदलना
पूछो मेरी उँगलियों से
कितना मुस्किल है इनका 
बंद होना और खुलना
तुम कहते हो आसान है सब
ये जो एहसास के चादर
तुम देखते हो
ये जिनके साथ
अपनी उँगलियों से खेलते हो
ये सिर्फ मेरे नहीं
तुम्हारे भी हैं
क्यों अनजान बनते हो ?
हर सच और झूठ से
क्या चाहते हो हाशिल करना ?
इन सब से
कभी खामोशी की दीवार खड़ी करते हो
कभी चुप्पी  की लकीर खीच देते हो 
क्या सोचते हो?
बाँट देंगे ये हमे
मिटा देंगे मुझे क्या?
ये मेरी सोच का सागर है
हर दीवार गिरा देगा
हर लकीर मिटा देगा
तुम तक पहुचने का 
रास्ता भी बता देगा
यूँ फासले पे खड़े होकर
तुम सोचते रहे हो
यकीन है मुझको
तुम्हारी सोच का दरिया
ये फासला मिटा देगा 
ये मेरी सोच का सागर
तेरी हर सोच को
अपना बना लेगा
ये मेरी सोच का सागर है..........