मैं दिन भर यूँ हीं सोचती रहती हूँ
लोग कहते हैं मैं पागल हूँ
होती हैं बिखरी जुल्फें
नज़र भी बेपरवाह
एक टक देखती रहती हूँ
समझ से लोग की बाहर मेरी "उड़ान"
जिसे देख कर जलते हैं सब
जाने क्यों
जाने क्यों मेरी तमन्नाओं का फैलाव इतना है
के समेत लेता है मुझे एक हीं बिंदु पर
सहेज कर रखता है मेरी हसरतों को ऐसे
जैसे शीप बारिश की बूंदों को.............
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