Friday, February 25, 2011

एहसास


एहसास जो कागज़ पर उतरते चले गए
अरमान जो अश्कों में बहते चले गए
हम रोक सके उन्हें खुदा का वास्ता देकर
और वो दिल को हमारे रौंदते चले गए
शिकवा नहीं उनसे शिकायत भी क्या करें
वो अपने थे मगर गैर होते चले गए
क्या आलम था उस पल का ये कैसे बयाँ करें
चुप रह गए हम और वो कहते चले गए


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