Sunday, March 13, 2011

इंतज़ार


आज इंतज़ार था
पता नहीं, दिल को क्यों ये ऐतबार था
आएगा वो या उसका कोई पैगाम
इसी वजह से दिल हर पल बेचैन बेकरार था
बेताब धड़कने, बेचैन साँसें 
कभी दिल में उठती दर्द की आँहें
दिल का हर जख्म आज हो चूका गहरा था
और हर घरी राहों पर इन आँखों का पहरा था
खुली खुली सी नज़र
जिसमे तस्वीर उसकी थी
एक अनकही, अनजानी सी तहरीर उसकी थी
नहीं जानते ये एसास का गुलिस्तान किसका था
पर हाँ, दिन गुजर गया मगर वो नहीं आया
मुझे "इंतज़ार" जिसका था........

No comments:

Post a Comment