मेरी तबीयत शमाँ से पूछ
जलती रही है रात भर
मचलती आरज़ू जिसमे
पिघलती रही है रात भर
रही थी रात भर जिसमे
मेरे सांसो की नाव खेलती
सारी रात जिस झूले
पर
नींद रही झूलती
तू पूछ चाँद से
कि जिसने राज कि मटकी सजाई है
सँवरती चाँदनी ने
जिस "ढाई" से दूरी बनाई है
कुंवारा आइना, जो अब भी पर्दे के अन्दर है
मेरे हाथों में फिर भी, जिसकी मुँह
दिखाई है
थिरकती रात, जो अब भी शिशक कर थाम लेती है
जो अंगारे दिल-ओ-दामन पर
तेरे छूने से बरसे
हैं
ना पूछ कभी मुझसे
"तुम ठीक तो हो ना"
पूछ उस नजर से
कि जिसने मेरी हस्ती
मिटाई है....
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