अभी भी नींद की आँखों में रात बांकी है
किनारों से समंदर की बात बांकी है
हर एक राज ने दफना लिया है खुद को कहीं
हर एक राज से परदे का उठना बांकी है
गलत किया नहीं...
गलत किया नहीं
छोड़ा जो साथ तुमने कभी
अंगार बनके जो बरसे
मेरे सिने पे कभी
वो धुल...
प्यार कह कर जिसे
मेरे चेहरे पे मला करते थे
और...
खूबसूरत हूँ मैं
ये ऐह्शास दिया करते थे
तुम्हारे बातों की जंजीर
अब भी कायम है
"तुम्हारी याद"...
"तुम्हारी याद" एक अंधा कुआँ सा लगता है
जिसकी गिरफ्त में दिल का करार रहता है
तुम्हीं से दूर हूँ...
तुम्हीं से दूर हूँ
फिर भी तुम्हीं हो पास मेरे
इसी एहसास से
दिल का चराग जलता है
कभी आओ...
कभी आओ
आके फिर से रुला दो मुझको
प्यार करने की फिर एक बार सजा दो मुझको
मिलाओ फिर से लकीरें हमारे हाथों की
फिर वही ख्वाब सुनहरे से दिखा दो मुझको
वो कुछ शब्द...
वो कुछ शब्द
जो फासले मिटाते थे
वही सब कुछ
फिर एक बार सुना दो मुझको
यकीन के टुकड़े
मैं समेटूं फिर से
फिर एक बार वही एक दगा दो मुझको
तुम्हारे दीद की थाली...
तुम्हारे दीद की थाली संभाले रखी है
मेरे अंश से
फिर एक बार मिला दो मुझको
तुम्हारी याद के शांचे में...
तुम्हारी याद के सांचे में ढल गई हूँ मैं
न पहचानोगे तुम भी
इतनी बदल गई हूँ मैं
समझ से दूर...
समझ से दूर हुई है जो आज सोच मेरी
लो...
आज फिर एक बार फलक हुई हूँ मैं.....
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