Tuesday, May 28, 2013

एहसान

तेरे शोर से दबती मेरी खामोशी
बेवजह बेसबब
आंखों में तैर जाती है
उभर आती है होठों पर
तरन्नुम बनकर
ओर जिगर चीड़ जाती है
अफसाना अनकहा हीं है
मेरे जहन में अब भी
तुम्हारे नाम से अब
जिंदगी भी काँप जाती है
बिछा कर चैन चादर
मै जब भी लेट जाती हूँ
तुम्हारी सिसकियां आकर
मेरे पाँओ दबाती है
भले तुम चीड़ जाते हो कलेजा
हरा जख्मों को करते हो
दुआ कि धड़कने तब भी
मेरी आँहों में पलती है
जो साँसें छीन लेते तुम
तो एक एहसान हो जाता
चुभन से तेरे चुंबन की

दहक कर रूह जलती है...

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