जुदाई की सभी रस्मों को तोड़ कर
उभरता अक्स उसका
दिल के टुकड़ों में
अपना वजूद तलाश करता है
ढूंढता है
अपनी कहानी के बिखरे पन्नों को
जिसे उसने हीं बिखेरा था
वो दिन अब भी याद है मुझे
वो कितना रोया था
चिल्लाया था
आँखों से बहते मोती
जिसे वो खुद हीं पी रहा था
और देख रहा था मुझे
अपनी जलती सुलगती नज़रों से
कुछ सवाल थे जिनमे..............
............. और नाराज़गी भी
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