मेरी बेबशी की दास्ताँ
मैं क्या लिखूँ
जो दे इजाजत वो
उसे दुआ लिखूँ
मुड़कर देखता नहीं
मै जानती हूँ
फिर भी नाम उसका
वफ़ा लिखूँ
लौट आती हैं टकराकर
हशरतें उससे
मैं इन हशरतों को
कहाँ रखूँ
बरसता आसमान मेरी आँखों से आज
मैं नम आँखों से
दिल की दास्ताँ लिखूँ
कभी सोचती हूँ भीड़ में
तनहा-तनहा
मैं किसके...? ? ? वास्ते
यादों का साम्याँ रखूँ
No comments:
Post a Comment