ये किस उम्मीद पर जी रही हूँ मैं
किसके वास्ते यहाँ खरी हूँ मैं
कौन है जो पुकारता है मुझे
किसकी आवाज पर थम गई हूँ मैं
क्यों रोकता है बार-बार उसका प्यार मुझे
क्यों एहसास बनकर उतर गया है रूह में मेरी
क्यों चाहती है आँखें दीदार उसका
क्यों ख्यालों में उसके गुम हो गयी हूँ मै
ढूंढ़ती हूँ खुद को या उसकी तलाश करती हूँ
न जाने, मै जिंदगी के हर पल में क्या करती हूँ
जवाब ढूंढ़ती हूँ अपने सवालों का
या जवाबों में सवाल धुध्ती हूँ
अजीब उलझनओ के बीच ये जिंदगी खरी है
और मै इन्ही उलझनओ के बीच,
जिंदगी तलाश करती हूँ
कभी दूर से तो कभी करीब से,
मैं उस वक़्त को देखा करती हूँ
जब तुमने पूछा था
"मैं सुबह से रात तक क्या करती हूँ"
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