Monday, January 17, 2011

आहट

एक तन्हा ज़िंदगी है और क़ैद में ख़ुशी है
मेरी बुझती आँखें एक जाल बुन रही हैं
वक़्त के टुकड़े हैं कुछ इस तरह से बिखरे
मेरी जलती साँसे इनसे उलझ रही हैं
टकराते हैं जिस जगह ये रास्ते भी थककर
ख़ुद ही वो हमारी मंज़िल-सी बन गई हैं
वो आसमां जो झुककर धरती को चूमता है
उस आसमां की सिम्त मेरी रूह का सफ़र है
एक अजनबी-सी आहट और दिल मुंतज़िर है

2 comments:

  1. ख़्वाब मरते नहीं
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    ख़्वाब मरते नहीं
    ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
    रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जाएँगे
    जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे
    ख़्वाब मरते नहीं
    ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं हवा हैं
    जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
    ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं
    रोशनी और नवा के अलम
    मक़्तलों में पहुँचकर भी झुकते नहीं
    ख़्वाब तो हर्फ़ हैं
    ख़्वाब तो नूर हैं
    ख़्वाब सुक़रात हैं
    ख़्वाब मंसूर हैं

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  2. तमन्ना जिंदगी की है
    ख्वाहिश खुशी की है
    लगन सफर की है
    मंजिल किस्मत की है

    साँसे उलझन में है
    पहचान दबिश में है
    मगर अपनी उमीद बुलंदियों पर ...

    छूना है आसमान को
    तोडना है तारों को
    मोडना है रास्तों को
    झुकाना है दुनिया को....
    सकारना है सपनों को ......

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