Sunday, January 30, 2011

अल्फाज


खामोशियों में लिपटे तेरे अल्फाज 
आज फिर कुछ कहते हैं, चाँद की चांदनी से 
गरजते बादल से मांग ली बूंदें उसने 
करता रहा पर्दा हर किसी से 
चमकती धुप में सूरज की, वो मोती धुन्धता था 
कल तक तो मेरे पास ही वो रह रहा था 
आज सुबह ही जाग उठा वो नींद से 
और फेर ली नजर मेरी  तरफ से उसने
चुरा लिया है चैन दिल के करार का 
आँखों में नहीं अक्स ख़ुशी के खुमार का 
दिन और रात के बीच का पर्दा भी हट गया 
जो छीन ली मुझसे मेरी शहर उसने 
वो कहता था मुझसे कल, मैं वक़्त नहीं 
उतर जाऊं जो दिल में वो शै नहीं
फिर भी दिल में वो हीं तो रह रहा था
कभी नहीं की जिसकी कदर उसने

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