Saturday, January 22, 2011

हक़ीक़त


सपनो का महल जो बन ही रहा था 
रौनकें जिसकी संवर ही रही थी 
जो था मेरे दिल के अरमानों का घर 
उसी पर तो सबकी निगाहें टिकी थीं 
फ़ना कर दिया इसके वजूद को उसने 
कभी जिसने इसकी कहानी लिखी थी 
जिसे हमने आज गुज़रा कल है बताया 
हम ख़ुद भी न समझे 
उसकी हक़ीक़त ही क्या थी 

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