आज भी यकीन नहीं
की वो रुत बदल गई
वो शबनमी चांदनी यूँ पिघल गई
अपने हाथों की लकीरों को
उसकी लकीरों से मिलाया था
कैसे करूँ यकीन, की लकीरें बदल गई
जिस राह पर चले थे
एक साथ हम कभी
मालुम हुआ अब ये, की राहें बदल गई
बदल गई बातें अब
बदल गए अंदाज
अब हर महफ़िल की रौनक बदल गई
बदली जो शक्ल फूलों ने
काँटों की शक्ल से
वक़्त से दोनों की शिकायत बदल गई......
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