Tuesday, May 28, 2013

एहसान

तेरे शोर से दबती मेरी खामोशी
बेवजह बेसबब
आंखों में तैर जाती है
उभर आती है होठों पर
तरन्नुम बनकर
ओर जिगर चीड़ जाती है
अफसाना अनकहा हीं है
मेरे जहन में अब भी
तुम्हारे नाम से अब
जिंदगी भी काँप जाती है
बिछा कर चैन चादर
मै जब भी लेट जाती हूँ
तुम्हारी सिसकियां आकर
मेरे पाँओ दबाती है
भले तुम चीड़ जाते हो कलेजा
हरा जख्मों को करते हो
दुआ कि धड़कने तब भी
मेरी आँहों में पलती है
जो साँसें छीन लेते तुम
तो एक एहसान हो जाता
चुभन से तेरे चुंबन की

दहक कर रूह जलती है...

Monday, March 4, 2013

तबीयत


मेरी तबीयत शमाँ से पूछ
जलती रही है रात भर
मचलती आरज़ू जिसमे
पिघलती रही है रात भर
रही थी रात भर जिसमे
मेरे सांसो की नाव खेलती
सारी रात जिस झूले पर
नींद रही झूलती
तू पूछ चाँद से
कि जिसने राज कि मटकी सजाई है
सँवरती चाँदनी ने
जिस "ढाई" से दूरी बनाई है
कुंवारा आइना, जो अब भी पर्दे के अन्दर है
मेरे हाथों में फिर भी, जिसकी मुँह दिखाई है
थिरकती रात, जो अब भी शिशक कर थाम लेती है
जो अंगारे दिल--दामन पर
तेरे छूने से बरसे हैं
ना पूछ कभी मुझसे
"तुम ठीक तो हो ना"
पूछ उस नजर से
कि जिसने मेरी हस्ती मिटाई है....

Saturday, June 2, 2012

फिर एक बार


अभी भी नींद की आँखों में रात बांकी है
किनारों से समंदर की बात बांकी है
हर एक राज ने दफना लिया है खुद को कहीं
हर एक राज से परदे का उठना बांकी है
गलत किया नहीं...

गलत किया नहीं 
छोड़ा जो साथ तुमने कभी
अंगार बनके जो बरसे
मेरे सिने पे कभी
वो धुल...
प्यार कह कर जिसे
मेरे चेहरे पे मला करते थे
और...
खूबसूरत हूँ मैं
ये ऐह्शास दिया करते थे
तुम्हारे बातों की जंजीर 
अब भी कायम है
"तुम्हारी याद"...

"तुम्हारी याद" एक अंधा कुआँ सा लगता है
जिसकी गिरफ्त में दिल का करार रहता है
तुम्हीं से दूर हूँ...

तुम्हीं से दूर हूँ
फिर भी तुम्हीं हो पास मेरे
इसी एहसास से 
दिल का चराग जलता है
कभी आओ...

कभी आओ
आके फिर से रुला दो मुझको
प्यार करने की फिर एक बार सजा दो मुझको 
मिलाओ फिर से लकीरें हमारे हाथों की
फिर वही ख्वाब सुनहरे से दिखा दो मुझको
वो कुछ शब्द...

वो कुछ शब्द
जो फासले मिटाते थे
वही सब कुछ
फिर एक बार सुना दो मुझको
यकीन के टुकड़े 
मैं समेटूं फिर से
फिर एक बार वही एक दगा दो मुझको
तुम्हारे दीद की थाली...

तुम्हारे दीद की थाली संभाले रखी है 
मेरे अंश से
फिर एक बार मिला दो मुझको
तुम्हारी याद के शांचे में...

तुम्हारी याद के सांचे में ढल गई हूँ मैं
पहचानोगे तुम भी
इतनी बदल गई हूँ मैं
समझ से दूर...

समझ से दूर हुई है जो आज सोच मेरी
लो...
आज फिर एक बार फलक हुई हूँ मैं.....



Monday, February 27, 2012

मुझे यकीन है


मुझे यकीन है... तुम दूर चले जाओगे
और गुजरे वक़्त की मानिंद... नहीं आओगे
जैसे तोड़ी थी तुमने... मेरी कसम एक दिन
किया हर वादा भी... एक दिन यूँ तोड़ जाओगे
कहा था झूठ तुमने... छू कर भी मुझे
बताओ अब... कैसे यकीं दिलाओगे
किया है तुमने रुशवा... हर राह मुझे
खुदी से पूछ लो... कहूँगी  मैं... तो रूठ जाओगे
मेरे सवाल ना करने से... यूँ नाराज ना हो
जवाब "दूरियाँ" होंगी... तो टूट जाओगे
चाहोगे दिल दुखाना... ये भी मुमकीन है
और आँखों में ले के अश्क... फिर मनाओगे
वो एक बात... अक्सर जिसे "जिदकहते हो
सांस है मेरी...  तुम तोड़ नहीं पाओगे
उसका गम भी अजीज है मुझे... खुशियों की तरह
मगर ये बात... कहाँ तुम समझ पाओगे
हर दिन करोगे यूँ हीं... तमन्ना मेरी
और यूँ हीं फासले बढाओगे
तेरी फितरत से वाकिफ है... ये दिल "दोस्त"
मेरा शम्मा- - दिल... हर रोज तुम जलाओगे
मुझे यकीन है... तुम दूर चले जाओगे
और गुजरे वक़्त की मानिंद
................................. नहीं आओगे
मुझे यकीन है..................

Thursday, January 12, 2012

शिकायत


आज भी यकीन नहीं 
की वो रुत बदल गई
वो शबनमी चांदनी यूँ पिघल गई
अपने हाथों की लकीरों को
उसकी लकीरों से मिलाया था
कैसे करूँ यकीन, की लकीरें बदल गई
जिस राह पर चले थे
एक साथ हम कभी
मालुम हुआ अब ये, की राहें बदल गई
बदल गई बातें अब
बदल गए अंदाज
अब हर महफ़िल की रौनक बदल गई
बदली जो शक्ल फूलों ने
काँटों की शक्ल से
वक़्त से दोनों की शिकायत बदल गई......